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तेरी बेवफाई

प्रतियोगिता के लिए


दर्द हद़ से बढ़ जाता है,ज़ब वेवफ़ाई तेरी याद आती है।
ख़ुद से भी मैं रूठ जाता हूँ,मेरी परछाई भी रुठ जातीहै।

 फुगां ऐसा हुआ मोहब्बत का इस नाजुक दिल में।

ज़रर दिखता नहीं पर दर्द बेतहाशा बढ़े जाती है।


मैंने तो मान लिया था मोहब्बत का खुदा तुझे।

खबर नहीं वेवफ़ा ग़ैर की आश्ना हुई जाती है।


आसूँ  निकलते नहीँ ,रोने की कितनी भी  कोशिश कर लूं।

दर्द से दहकती रेत का दरिया ,सभी अश्कों को सुखा देती है।

दिल में भरे गुब़ार इतने,  इक आह भी न निकल पाए।
म़हफिलों की  क्या बात करें ,तन्हाई भी बहुत सताती है।

आखों के  सामने जब  कभी ,परछाई तेरी दिख जाए।
उसे पकड़ने की कोशिशों में ,बेचैनी  बहुत जाती है

ज़माने को ये लगता है, मैं इक हारा हुआ खिलाड़ी हूँ।
मोहब्बतों के इस खेल मे,इक दिलका लुटा ज़ुआरी हूँ।
स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेहिल
नईदिल्ली

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4 Comments

Swati chourasia

25-Sep-2021 08:27 PM

Very nice 👌

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Seema Priyadarshini sahay

25-Sep-2021 05:44 PM

मैम इतना खूबसूरत कैसे लिख लेती हैं आप। बहुत ही अच्छी रचना।

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Sneh lata pandey

26-Sep-2021 09:45 PM

हार्दिक आभार आपका 🙏🙏 कोशिश करती हूं ज्यादा लिखना नहीं आता है।

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Anju Dixit

25-Sep-2021 04:18 PM

बहुत खूब दी

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